साधुओं की तुलना कुत्तों से, परमानंद गिरी महाराज पर फूटा गुस्सा!
परमानंद गिरी महाराज की विवादास्पद टिप्पणी: साधु-संतों में नाराजगी का माहौल
युगपुरुष परमानंद गिरी महाराज के हालिया बयान ने साधु-संतों और आपसी सम्मान को लेकर बहस को जन्म दिया है। १ जून को हरिद्वार में एक दंत कथा सुनाते समय उन्होंने साधु-संतों की तुलना कुत्तों से कर दी, जिससे हर तरफ हो हल्ला मच गया। इस विवादास्पद टिप्पणी के बाद साधु-संतों का गुस्सा फूट पड़ा है, और विभिन्न धार्मिक संगठनों ने उनकी कार्रवाई की मांग की है।
वीडियो का वायरल होना और विवाद की शुरुआत
वीडियो में परमानंद गिरी महाराज द्वारा की गई टिप्पणी के चलते साधु-संतों की भावनाएँ आहत हुई हैं। यह वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ, जिससे मुद्दा गरमा गया। कॉन्टेंट में उन्होंने साधु-संतों की तुलना कुत्तों से की, जो कि अत्यंत अपमानजनक माना गया। इस संवाद का प्रभाव इतना गहरा था कि यह साधु-संतों के बीच असंतोष और नाराजगी का कारण बना।
साधु-संतों का विरोध और प्रदर्शन
उज्जैन में, पंचायती निरंजनी अखाड़े के महंत सुरेशानंद पुरी जी महाराज ने साधु-संतों के साथ मिलकर परमानंद गिरी महाराज का पुतला फूंका। यह एक प्रदर्शन था, जिसमें उन्होंने कहा कि इस प्रकार के बयानों से संत समाज का अपमान होता है। सड़क पर खड़े होकर साधु-संतों ने मांग की कि परमानंद गिरी महाराज को पदमुक्त किया जाए और उन पर कार्रवाई की जाए।
- सुरेशानंद पुरी जी का बयान: “ऐसे बयान नहीं दिए जाने चाहिए।”
- आंदोलन में शामिल संतों की संख्या: कई संत और साधु प्रदर्शन में शामिल हुए।
- आलोचना का विपक्ष: “अखाड़ा परिषद को पदमुक्त करना चाहिए।”
अखाड़ा परिषद का रुख
परमानंद गिरी महाराज के इस बयान पर अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रवींद्र पुरी जी महाराज ने खेद जताया था। उन्होंने कहा कि इस प्रकार का वक्तव्य देना शोभा नहीं देता। उन्होंने यह भी कहा कि इस स्थिति में उन लोगों को भी बोलना चाहिए था जो उस समय वहां मौजूद थे, जैसे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और साध्वी ऋतंभरा।
निष्कर्ष
इस विवाद ने साहसिकता और सम्मान को लेकर कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए हैं। साधु-संतों की गरिमा को बनाए रखने की आवश्यकता है और उनके प्रति ऐसा अपमानजनक टिप्पणी निश्चित रूप से चिंता का विषय है। परमानंद गिरी महाराज की टिप्पणी न केवल एक व्यक्ति की सोच को दर्शाती है, बल्कि पूरे संत समाज का ध्यान इस ओर खींचती है कि कैसे हम एक-दूसरे के प्रति सम्मानित हो सकते हैं।
समाज में ऐसी घटनाएँ हमें यह विचार करने पर मजबूर करती हैं कि हम किस प्रकार की बातचीत को सहन कर सकते हैं और हमारे मूल्यों को कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है। संत समाज की स्थिति और सम्मान को बनाए रखना सभी की जिम्मेदारी है, और यह घटनाएँ हमें इस दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं।
आगे क्या होगा, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन एक बात स्पष्ट है कि साधु-संतों के साथ इस प्रकार के बयान या व्यवहार को सहन नहीं किया जा सकता।